वो कहते थे राम राम, हम बोलें उनको भाईजान
वो दोहे हिंदी गाते थे, हम नज्में उर्दू सुनाते थे
वो काशी के रहने वाले, हमारे लखनवी अंदाज़ निराले
वो आँखों में काजल लगाते थे, मूंछों पर ताव दिलाते थे।
हमारी मूंछें तो थी भी नहीं, हम आँखों को सुरमयी बनाते थे
वो प्रेम पाश में बंधे हुए, हम इश्क़ इबादत करने वाले
वो साग चने का खाते थे, हम मुर्ग मसल्लम करने वाले
वो अचकन पहना करते थे, हम कुर्ते पैजामे वाले
वो सच के साथी कहलाते थे, हम झूठ से नफरत करने वाले
वो होली दीवाली मनाते थे, हम रोज़ा इफ्तारी करने वाले
वो भगत सिंह पर इतराते थे, हम अशफ़ाक़ उल्ला पर मरने वाले
उनका हृदय था जल शीतल सा, हमारा दिल भी था पाक साफ
वो मक्का मदीने गए नहीं, हम काशी के हुए नहीं
हम उनके साथ जिए नहीं, वो हमारे साथ जिए नहीं
उनका ईमान था मुसलमान, हमें था सनातन धर्म का ज्ञान
उनका दीन भी एक ही था, हमारा भी ॐ में बसा हुआ
वो कहते थे राम राम, हम बोलें उनको भाईजान
वो दोहे हिंदी गाते थे, हम नज्में उर्दू सुनाते थे
वो काशी के रहने वाले, हमारे लखनवी अंदाज़ निराले
वो आँखों में काजल लगाते थे, मूंछों पर ताव दिलाते थे।
हमारी मूंछें तो थी भी नहीं, हम आँखों को सुरमयी बनाते थे
वो प्रेम पाश में बंधे हुए, हम इश्क़ इबादत करने वाले
वो साग चने का खाते थे, हम मुर्ग मसल्लम करने वाले
वो अचकन पहना करते थे, हम कुर्ते पैजामे वाले
वो सच के साथी कहलाते थे, हम झूठ से नफरत करने वाले
वो होली दीवाली मनाते थे, हम रोज़ा इफ्तारी करने वाले
वो भगत सिंह पर इतराते थे, हम अशफ़ाक़ उल्ला पर मरने वाले
उनका हृदय था जल शीतल सा, हमारा दिल भी था पाक साफ
वो मक्का मदीने गए नहीं, हम काशी के हुए नहीं
हम उनके साथ जिए नहीं, वो हमारे साथ जिए नहीं
उनका ईमान था मुसलमान, हमें था सनातन धर्म का ज्ञान
उनका दीन भी एक ही था, हमारा भी ॐ में बसा हुआ
वो कहते थे राम राम, हम बोलें उनको भाईजान
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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