Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, December 22, 2015

'दो अंगूठियां'
The two rings

मेरे हाथ की दोनों अंगूठियां
एक दूसरे से बात नहीं करतीं
एक को खुद के सोने का होने पर गुमान है
तो दूसरी इस बात से नखरे खाती है
कि वो ज्यादा उजली है, चाँदी जो ठहरी
पर शायद इन दोनों को ही नहीं पता
कि इन्हें बनाने वाला एक ही था
उसी ने इन्हें ये रूप दिया
उसी ने इनमें मोती और पत्थर जड़े
दोनों को ही आग में तपाया गया,
हथोड़ियों से पीटा गया
तब जाकर कहीं
इन्हें इनका ये वर्तमान स्वरुप मिला
वरना एक जाने किस गर्त में पड़ी रहती
और दूसरी पत्थरों संग पत्थर ही रहती

यदि ये एक साथ मिल, नवग्रहों की भांति
वर्तमान की परिक्रमा करें
और स्वयं का दम्भ छोड़ दे
तो इनके मध्य का मौन
अमिट भूत को
नश्वर भविष्य बना देगा

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.vi.sualize.us
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© Snehil Srivastava

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