Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, December 31, 2015

जुम्मन मियां की चप्पल
Jumman Miyan Ki Chappal

रही सही कसर तब पूरी हो गयी
जब जुम्मन मियां की चप्पल चोरी हो गयी
पिछले इतवार को ही सवा रुपये देकर
लाला की दुकान से लाये थे
लाला बोले- जुम्मन मियां, ले जाओ
तुम भी क्या याद करोगे,
कितनी मजबूत चप्पल दी है लाला ने,
दो अढ़ाई बरस कहीं नहीं गए
चाहो तो कोसों नाप लो, घिस जाये तो नाम बदल देना

बेचारे जुम्मन मियां, सर पकड़े बैठे हैं
चप्पल के चोरी हो जाने के गम में
अभी तो पैर में लगा घाव भरा भी नहीं था
अब तो भरने से रहा
डॉक्टर साहब, ऐसी कड़वी दवा देते हैं
की जी मिचला जाता है

अब कहाँ से जोडें इतने रुपये
की नवी जोड़ी लेवें
अम्मीजान वैसे ही, खटिया पकड़े हैं
पानी बरसा नहीं, खेत सूखे पड़े है

गांव में उड़ती उड़ती ख़बर है
कि कोई बाहेरि है, जो माल असबाब चुराकर
खुद ही माल पुआ काट रहा है

जुम्मन मियां रात की पहरेदारी में हैं
इकलौती बकरी को खुले में बांधे हैं
खट्ट की आवाज़ हुई रात के डेढ़ बजे
ये दौड़े की वो दौड़े
और धर लिया चोर को
पता चला ई तो अपना सुखिया है
पर वो चोरी खातिर नहीं आया
चप्पल रखने आया था
अम्मा गलती से पहन गयीं रहीं
बुजर्ग हैं, दिखता नहीं अच्छे से
तो पहले काहे नहीं बताये?
डर गए, कि जुम्मन चाचा गुस्सा करे तो।
माफ़ कर दो चाचा।

सुखिया लौटने लगा।
ढपक ढपक कर,
घाव तो उसके पैर में भी है।


-Snehil Srivastava
Picture credit: www.mojarto.com
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© Snehil Srivastava

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