Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Friday, December 11, 2015

'कल की बात'
The beautiful past

आज मुझसे देर हो गयी, थोड़ा जल्दी में जो था
और तुमने मुझे देखते ही अपनी बाहों में भर लिया
तुम्हें मेरा देर से आना, अपने सीने से लगाना
आँखें बंद कर जरा सा शर्माना, इतना क्यों भाता था
मुझे मालूम है, यूँ अकेले बैठकर तुम मुझे
घंटों सोचा करती थी, और ये भी
कि तुम्हारा अल्हड़पन मुझे कितना जरुरी लगता है
यही एहसास तुम्हारे मखमली गालों को सुर्ख कर देता था
और तुम्हारे नर्म होंठ लरज़ से चमक जाते थे
तुम्हारा ना संवरना मुझे तुम्हारे और करीब लाता था
तुम्हारी शरारत भरी छुअन मुझे आज भी याद है
जब तुम्हारे भीतर छुपा बचपन तुमपर हावी हो जाता था
और मुझे जाने कितनी चपत पड़ा करती थी, बेवजह
तुम खराब सी बस हंसा करती थी, बेपरवाह
मैं झूठा नाराज़ होता, तुम मुझे सच्चा म
नाती
मैं तुम्हें आँखों से डराता, तुम मासूम सी चुप हो जाती
पर आज मुझसे देर नहीं हुई, चाहकर भी
तुम नहीं हो यहाँ, सिर्फ अकेलापन है
तुम्हारा होना, जैसे अभी दो पल पहले की ही बात हो
कभी कभी देरी कितनी खूबसूरत हुआ करती है

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.favim.com
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© Snehil Srivastava

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