हर रुदन हर एक क्रंदन
में कुछ सामानांतर होता है
कुछ अवस्थाओं पर निर्भर होते हैं
तो कुछ व्यवस्थाओं पर
हाशिये पर लौटा दिए गए
बादशाहों की भांति
कुछ अपने तख्तोताज गंवाते हैं
और कुछ अपने नमित कोरों को
नम ही रहने देना चाहते हैं
उन्हें लगता है कि
ये रुदन अथवा ये क्रंदन
उन्हें उनके भूत से मिलाप को तत्पर है
किन्तु ये अपने हृदय सा
बिलकुल प्रस्तर है
काँट छाँटकर जिसको मूर्त रूप दिया जायेगा
और जिसपर कोई आकर फूल चढ़ाएगा
क्योंकि इनके बीच का अंतर ही
इनके रुदन का कारण है
और इनका सम ही
इनके क्रंदन का
में कुछ सामानांतर होता है
कुछ अवस्थाओं पर निर्भर होते हैं
तो कुछ व्यवस्थाओं पर
हाशिये पर लौटा दिए गए
बादशाहों की भांति
कुछ अपने तख्तोताज गंवाते हैं
और कुछ अपने नमित कोरों को
नम ही रहने देना चाहते हैं
उन्हें लगता है कि
ये रुदन अथवा ये क्रंदन
उन्हें उनके भूत से मिलाप को तत्पर है
किन्तु ये अपने हृदय सा
बिलकुल प्रस्तर है
काँट छाँटकर जिसको मूर्त रूप दिया जायेगा
और जिसपर कोई आकर फूल चढ़ाएगा
क्योंकि इनके बीच का अंतर ही
इनके रुदन का कारण है
और इनका सम ही
इनके क्रंदन का
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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