बीते दिनों एक वाकया हो गया
एक गरीब के हाथों एक अपराध हो गया
वो गांव से शहर गुड़ बेचने आता था
और सड़क किनारे अपनी छोटी सी ठेलिया लगाता था
उसके घर में माँ बाप, भार्या और तीन छोटे बच्चे थे
जीवन तो क्या कहें पर मन सबके सच्चे थे
तनिक सी आय में बसर करना मुश्किल था
गरीब क्या करता, वो आखिर किस काबिल था
और फिर एक दिन, उसने अपनी ठेलिया बेच दी
गांव छोड़ शहर में बसने की सोच ली
मन में ठाना कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा
और तब सारा परिवार सुख की बंसी बजायेगा
धीरे धीरे समय बीता, पर कुछ भी था न बदला
गांव छोड़ शहर आकर भी है आज तक कोई संभला?
अपराध बहुत से होते हैं, पर मिट्टी तो अपनी माँ है
जो सुख अपने गांव में है, वैसा सुख और कहाँ है?
एक गरीब के हाथों एक अपराध हो गया
वो गांव से शहर गुड़ बेचने आता था
और सड़क किनारे अपनी छोटी सी ठेलिया लगाता था
उसके घर में माँ बाप, भार्या और तीन छोटे बच्चे थे
जीवन तो क्या कहें पर मन सबके सच्चे थे
तनिक सी आय में बसर करना मुश्किल था
गरीब क्या करता, वो आखिर किस काबिल था
और फिर एक दिन, उसने अपनी ठेलिया बेच दी
गांव छोड़ शहर में बसने की सोच ली
मन में ठाना कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा
और तब सारा परिवार सुख की बंसी बजायेगा
धीरे धीरे समय बीता, पर कुछ भी था न बदला
गांव छोड़ शहर आकर भी है आज तक कोई संभला?
अपराध बहुत से होते हैं, पर मिट्टी तो अपनी माँ है
जो सुख अपने गांव में है, वैसा सुख और कहाँ है?
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.flicker.com
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© Snehil Srivastava
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