हिम प्रदेश से टप टप कर बहता पानी
जब धरा अपनी अंजुलि में भरती है
और तब मेरा सृजन मुझसे कहता है
कि इन पलों को सहेज लेना ही सही मायने में
जीवन सरिता है
प्रकृति की उत्कृष्टता फूलों का रूप लिए
जब कण कण में महकती है
और तब मेरा जन्म मुझसे कहता है
कि इन पलों को जी लेना ही सही मायने में
सम्पूर्णता है
दसों दिशाएं विभिन्न मार्ग लिए
जब एक दिशा में पहुंचतीं हैं
और तब मेरा मर्म मुझसे कहता है
कि इन पलों को समझ लेना ही सही मायने ने
मार्मिकता है
ठण्ड में फैले कुंहासे से छनकर आती धूप
कुछ गुनगुनी सी लगती है
और तब मेरा अंतर्मन मुझसे कहता है
कि इन पलों की संजों लेना ही सही मायने में
कविता है
जब धरा अपनी अंजुलि में भरती है
और तब मेरा सृजन मुझसे कहता है
कि इन पलों को सहेज लेना ही सही मायने में
जीवन सरिता है
प्रकृति की उत्कृष्टता फूलों का रूप लिए
जब कण कण में महकती है
और तब मेरा जन्म मुझसे कहता है
कि इन पलों को जी लेना ही सही मायने में
सम्पूर्णता है
दसों दिशाएं विभिन्न मार्ग लिए
जब एक दिशा में पहुंचतीं हैं
और तब मेरा मर्म मुझसे कहता है
कि इन पलों को समझ लेना ही सही मायने ने
मार्मिकता है
ठण्ड में फैले कुंहासे से छनकर आती धूप
कुछ गुनगुनी सी लगती है
और तब मेरा अंतर्मन मुझसे कहता है
कि इन पलों की संजों लेना ही सही मायने में
कविता है
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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