दो चार दिनों बाद
भावनाएं भी मर ही जाती है
जो आज है वो कल नहीं था
और जो कल होगा वो आज नहीं है
किन्तु इनमें कुछ तो जुड़ाव है
जो उनमें सामन्जस्य पैदा करता है
हर मरण एक जन्म का द्योतक है
और हर जन्म एक अंत का
भावनाएं इस भवसागर में कभी डूबती है
और कभी उबर जाती हैं
पर भावनात्मक होना
गलत तो नहीं
यदि ये क्रोध हैं
तो प्रेम भी यही हैं
यदि ये ईर्ष्या कहलाती हैं
तो इन्हें ही तो स्नेह कहा जाता है
भय भी यही हैं
अजेय भी यही
यदि इनमे रूप की धूप है
तो इन्हीं में चारित्रिक छाँव है
क्या हुआ, कुछ भावनाएं यदि पूर्ण न हुई
नियति पूर्णता में नहीं
अधूरी सम्पूर्णता में है
दो चार दिनों में,
नयी भावनाएं रुधिर में
एक बार फिर संचरण करेंगी
कोंम्पलें फिर फूटेंगीं
पुष्प खिल जाएंगे
भावनाएं हंसेंगी,
सदा के लिए
होगा कितना विहंगम दृश्य
भव्य अद्भुत अतुलित
भावनाएं भी मर ही जाती है
जो आज है वो कल नहीं था
और जो कल होगा वो आज नहीं है
किन्तु इनमें कुछ तो जुड़ाव है
जो उनमें सामन्जस्य पैदा करता है
हर मरण एक जन्म का द्योतक है
और हर जन्म एक अंत का
भावनाएं इस भवसागर में कभी डूबती है
और कभी उबर जाती हैं
पर भावनात्मक होना
गलत तो नहीं
यदि ये क्रोध हैं
तो प्रेम भी यही हैं
यदि ये ईर्ष्या कहलाती हैं
तो इन्हें ही तो स्नेह कहा जाता है
भय भी यही हैं
अजेय भी यही
यदि इनमे रूप की धूप है
तो इन्हीं में चारित्रिक छाँव है
क्या हुआ, कुछ भावनाएं यदि पूर्ण न हुई
नियति पूर्णता में नहीं
अधूरी सम्पूर्णता में है
दो चार दिनों में,
नयी भावनाएं रुधिर में
एक बार फिर संचरण करेंगी
कोंम्पलें फिर फूटेंगीं
पुष्प खिल जाएंगे
भावनाएं हंसेंगी,
सदा के लिए
होगा कितना विहंगम दृश्य
भव्य अद्भुत अतुलित
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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