Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, December 31, 2015

'याकि सच या फिर सपना'
Truth in a dream

और फिर मेरा सच एक सपना बन गया
ये शुरू कब हुआ मुझे याद नहीं
मैं हूँ इसमें, पर कहीं दिखता नहीं
इसमें न कोई रंग हैं, न ही आवाजें
ना ही दिन और ना ही कोई रातें
ये अनवरत है किन्तु दिशा हीन है
जैसे कोई सपना अपना और उस सपने की गहरी नींद है
इसमें रास्ते हैं, पर किसके वास्ते?
सबका दुःख दर्द शायद यही हैं बांटते
इनमे नीरसता नहीं, अलौकिकता है, सार्वभौमिकता है
इनमें ही सच का, एक सत्य रूप दिखता है
काश ये सपना, सपना ना होता
मैं यूँ ही जागता, कभी ना सोता
काश ऐसा होता, तो क्या ना होता
ये सपना ना होता, ये सच ही होता
और फिर मेरा सच एक सपना बन गया



-Snehil Srivastava
Picture credit: www.quotesgram.com
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© Snehil Srivastava

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