मैंने सागर के किनारों को तो नहीं देखा
पर उसकी लहरों का किनारों से मिलना
और मिलकर लौट जाना, मुझे मेरी
भावनाओं से मिलता जुलता लगता है
मेरी भावनाएं विस्तृत हैं, उनका आगार गहरा है
किन्तु किनारे तक पहुँचने की क्षुधा
उसे हर बार खाली हाथ लौटने को
मजबूर कर देती है
हर किनारे मूक होकर इनके अधूरेपन से
खुद को पूरा करते हैं
मेरी भावनाएं कुछ खारी भी हैं
इनमें व्याप्त प्राण इसी कारण से
कसैले होते जा रहे हैं
कहाँ ये सागर, ये लहरें, ये किनारे
और कहाँ ये अधूरी भावनाएं
विस्तार इनका
इन दोनों के अधूरेपन पर
एक अनुत्तरित प्रश्न चिन्ह है
पर उसकी लहरों का किनारों से मिलना
और मिलकर लौट जाना, मुझे मेरी
भावनाओं से मिलता जुलता लगता है
मेरी भावनाएं विस्तृत हैं, उनका आगार गहरा है
किन्तु किनारे तक पहुँचने की क्षुधा
उसे हर बार खाली हाथ लौटने को
मजबूर कर देती है
हर किनारे मूक होकर इनके अधूरेपन से
खुद को पूरा करते हैं
मेरी भावनाएं कुछ खारी भी हैं
इनमें व्याप्त प्राण इसी कारण से
कसैले होते जा रहे हैं
कहाँ ये सागर, ये लहरें, ये किनारे
और कहाँ ये अधूरी भावनाएं
विस्तार इनका
इन दोनों के अधूरेपन पर
एक अनुत्तरित प्रश्न चिन्ह है
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.splashnology.com
(Note- No part of this post may be published reproduced or stored in a retrieval system in any forms or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
No comments:
Post a Comment