मैं ठहरी लड़की।
जिसके जन्म पर माँ तो मुस्कुरायी
बाकियों के चेहरे पर मुर्दनी थी छायी
मेरी किलकारियों को शोर कहा जाता
ना छठी, ना बरही ना ही कोई और स्वांग रचा जाता
मुझमें जीवन था छुईमुई सा कोमल
मेरे गालों को छुओ तो लगे जैसे मखमल
मुझे अछूता जान रहते सब मुझसे दूर
मैया भगवती क्या यही था तुमको मंजूर
पर मैं ठहरी लड़की।
मेरा रुदन अनसुना करते थे सब
माँ चुपके से गोद में उठा पुचकारती थी तब
मेरी टकटकी, आँखों की झपकन
निहारती मेरी माँ हर पल हर दम
देखकर ये मातृ प्रेम सारे होते विक्षुब्ध
अकेला छोड़ मुझे, भूलते मेरी सुधबुध
अज्ञानी वे सारे, जननी को न समझे
यदि नहीं रही मैं, हो जायेगी प्रलय
पर मैं ठहरी लड़की।
मुझमें करुणा है, ममता है
सर्व अस्तित्व मुझसे ही बनता है
मैं हूँ क्षमादायनी, मैं ही ब्रम्ह विस्तारणी
मुझमें ही व्याप्त है जनन और जननी।
जिसके जन्म पर माँ तो मुस्कुरायी
बाकियों के चेहरे पर मुर्दनी थी छायी
मेरी किलकारियों को शोर कहा जाता
ना छठी, ना बरही ना ही कोई और स्वांग रचा जाता
मुझमें जीवन था छुईमुई सा कोमल
मेरे गालों को छुओ तो लगे जैसे मखमल
मुझे अछूता जान रहते सब मुझसे दूर
मैया भगवती क्या यही था तुमको मंजूर
पर मैं ठहरी लड़की।
मेरा रुदन अनसुना करते थे सब
माँ चुपके से गोद में उठा पुचकारती थी तब
मेरी टकटकी, आँखों की झपकन
निहारती मेरी माँ हर पल हर दम
देखकर ये मातृ प्रेम सारे होते विक्षुब्ध
अकेला छोड़ मुझे, भूलते मेरी सुधबुध
अज्ञानी वे सारे, जननी को न समझे
यदि नहीं रही मैं, हो जायेगी प्रलय
पर मैं ठहरी लड़की।
मुझमें करुणा है, ममता है
सर्व अस्तित्व मुझसे ही बनता है
मैं हूँ क्षमादायनी, मैं ही ब्रम्ह विस्तारणी
मुझमें ही व्याप्त है जनन और जननी।
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.indianchild.com
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© Snehil Srivastava
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