Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, December 31, 2015

कोई और या मैं
Unknown me

उसका चीथड़ों में लिपटा शरीर
बिखरे बाल
और यहाँ वहाँ हुए घावों से रिसता खून
रह रहकर
मुझे मेरे मानव होने पर संदेह दिला रहे थे

वहीं कुछ दूर बैठे गवैये लोकगीत गा रहे थे
कि-
"दुई मछरी जब छटपट करिहै
दुई थरिअन मा खाना भरिहै"

तो क्या ये मेरी छटपटाहट है
कि कोई यूँ तड़प रहा है
और मैं रोज की तरह
जिए जा रहा हूँ, अनभिज्ञ
नहीं। घाव शारीरिक ही हों
या खून किसी और का बहे
जब मेरी आँख से भी टपके
तो कहूँ कि ये असल है,
मुझमे भी है थोड़ा खून
वरना उसमें और मुझमे
कोई फर्क नहीं।

मेरा शरीर ग्लानि के चीथड़ों में लिपटा हुआ होगा
मेरा मौन, बालों की तरह बिखरा हुआ होगा
और मेरे बिंधे हृदय से खून रिसेगा
और तब
मुझे मेरे मानव होने पर यकीन होगा


-Snehil Srivastava
Picture credit: www.fanpop.com
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© Snehil Srivastava

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