Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, December 17, 2015

'सूखे हुए चावल'
'One plate rice and a hungry child'

सूखे हुए चावल, जब आज मुझे सड़क के किनारे पड़े मिले
तो मुझे किसी फ़िल्म में भूख से बिलखते दो बच्चे याद आ गए
यूँ तो फ़िल्में पटकथा के साथ चलती हैं
किन्तु यही फिल्में हमारे इसी संभ्रांत समाज का दर्पण भी हुआ करती हैं
एक रोज मैंने भी
कुछ सूखी रोटिया, थोड़ी बची हुई सब्जी और एक कटोरी दाल फेंक दी थी
ये और बात है, उस सारे दिन मुझे 'किसी और' वजह से
भूखा रहना पड़ा था
ये सूखे, सड़क किनारे पड़े हुए, चावल
जब बने होंगे, मुझे लगता है-
बड़ी अच्छी महक आयी होगी
और जिसने भी इन्हें पकाया होगा
उसका मन इसी बात को सोचकर तृप्त हो गया होगा
कि खाने वाले की भूख, इसके उबलने से आने वाली महक से ही मिट जायेगी
पर जब ये किसी की भूख मिटाने के लिए बने थे
तो यहाँ यूँ पड़े ही क्यों हैं
काश आज कोई सारा दिन भूखा न रहा हो
काश ये भी किसी फ़िल्म की कहानी ही होती
काश ये चावल 'किसी और' की भूख मिटा सकते
काश...!

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.livinghistoryfarm.org
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© Snehil Srivastava

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