हर बार की तरह इस बार भी
उस याद की एक झलक ज़ेहन में आते ही
टूटी कड़ियां जुड़ने सी लगीं
और फिर,
यादों का एक काफिला बनने लगा
जिसमें,
पहली मुलाकात का असर
कहीं दूर आखिरी छोरों पर नज़र आया
शुरुआत की नखरेबाज़ी
गलतियों की नज़रअंदाज़ी
कुछ रूठना, ज्यादा मनाना
हंसी ठिठोलियों का,
एक सिलसिला बनते जाना
उसी असर का हमकदम था
पर क्या करें,
ऊपरवाला बड़ा बेरहम था
काफिले के बीचोंबीच
चलते मुसाफ़िर
दिमाग में बैठे अहं के जानने वाले थे
और फिर वो कहाँ किसकी मानने वाले थे
वो लड़ते थे, इस वजह या बेवजह
साबित करने में लगे रहते
कौन है सबसे जुदा
और पहली कतार में
नफरत थी, सर उठाये
इसको जो भी कुछ समझाए
अपनी जान गंवाए
जहाँ पहली मुलाकात मासूम थी
वहीं आखिरी, मासूमियत से महरूम
सबसे आगे
इन सबकी तारीख लिखने वाला
सर झुकाये, सबसे जीता
खुद से हारा
वक़्त बेचारा, अनचाहे दिल से
काफिले को कहीं ले जा रहा था
किसी नए मंज़र की तलाश में
बस एक झलक से जुड़ी कड़ियां
शायद एक नयी कहानी लिख दें
'लोग मिलते रहे, काफिला बनता चला गया'
उस याद की एक झलक ज़ेहन में आते ही
टूटी कड़ियां जुड़ने सी लगीं
और फिर,
यादों का एक काफिला बनने लगा
जिसमें,
पहली मुलाकात का असर
कहीं दूर आखिरी छोरों पर नज़र आया
शुरुआत की नखरेबाज़ी
गलतियों की नज़रअंदाज़ी
कुछ रूठना, ज्यादा मनाना
हंसी ठिठोलियों का,
एक सिलसिला बनते जाना
उसी असर का हमकदम था
पर क्या करें,
ऊपरवाला बड़ा बेरहम था
काफिले के बीचोंबीच
चलते मुसाफ़िर
दिमाग में बैठे अहं के जानने वाले थे
और फिर वो कहाँ किसकी मानने वाले थे
वो लड़ते थे, इस वजह या बेवजह
साबित करने में लगे रहते
कौन है सबसे जुदा
और पहली कतार में
नफरत थी, सर उठाये
इसको जो भी कुछ समझाए
अपनी जान गंवाए
जहाँ पहली मुलाकात मासूम थी
वहीं आखिरी, मासूमियत से महरूम
सबसे आगे
इन सबकी तारीख लिखने वाला
सर झुकाये, सबसे जीता
खुद से हारा
वक़्त बेचारा, अनचाहे दिल से
काफिले को कहीं ले जा रहा था
किसी नए मंज़र की तलाश में
बस एक झलक से जुड़ी कड़ियां
शायद एक नयी कहानी लिख दें
'लोग मिलते रहे, काफिला बनता चला गया'
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.indiacurrents.com
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© Snehil Srivastava
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