अंग्रेज़ियत भरे लहज़े से लबरेज़
एक इंडियन की भूख
'व्हाट्स इन दि मेनू' सरीखे प्रश्नों में झलक जाती है
और वहीं एक भारतीय पूछता है,
भैया खाना लगा दो, बड़ी जोरों की भूख लगी है
अंतर भाव का है, भूख तो सबकी एक जैसे ही होती है
कुछ कद्रदानों को सूट बूट में रहना,
उमंग से भर देता है। घोड़ी मिले
अभी चढ़ जाएं सेहरा बांधकर
वही अगले को नजरबट्टू से
नजरबन्द करना पड़ता है
कही मोहल्ले वालों की नजर न लग जाये
वैसे भी अंग्रेजी लहज़ा होना कोई गुनाह तो नहीं
पर यदि अंग्रेज़ियत इतनी ही पसंद है
जाओ भैया, कोनो रोके थोड़े है तुमका
चाल चलन, रहन सहन के इतने मायने नहीं
मन-कर्म से भारतीय हों तो बने कुछ बात
कुछ मित्र मण्डली, बड़ी आधुनिक होती जा रही है
या कहें हम दकियानूसी
पर इन इंडियन अंग्रेजों से तो भगवान् ही बचाये
बाकि कोई बात नहीं
डेमोक्रेसी है, जो है सब ठीक।
एक इंडियन की भूख
'व्हाट्स इन दि मेनू' सरीखे प्रश्नों में झलक जाती है
और वहीं एक भारतीय पूछता है,
भैया खाना लगा दो, बड़ी जोरों की भूख लगी है
अंतर भाव का है, भूख तो सबकी एक जैसे ही होती है
कुछ कद्रदानों को सूट बूट में रहना,
उमंग से भर देता है। घोड़ी मिले
अभी चढ़ जाएं सेहरा बांधकर
वही अगले को नजरबट्टू से
नजरबन्द करना पड़ता है
कही मोहल्ले वालों की नजर न लग जाये
वैसे भी अंग्रेजी लहज़ा होना कोई गुनाह तो नहीं
पर यदि अंग्रेज़ियत इतनी ही पसंद है
जाओ भैया, कोनो रोके थोड़े है तुमका
चाल चलन, रहन सहन के इतने मायने नहीं
मन-कर्म से भारतीय हों तो बने कुछ बात
कुछ मित्र मण्डली, बड़ी आधुनिक होती जा रही है
या कहें हम दकियानूसी
पर इन इंडियन अंग्रेजों से तो भगवान् ही बचाये
बाकि कोई बात नहीं
डेमोक्रेसी है, जो है सब ठीक।
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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