कुछ नहीं, यूँ ही बेवजह
एक सोच है ये, कि
रिश्ते बनकर यूँ टूटें
तो हम कैसे जियें।
हम कैसे कहें कि
सब खुश रहें
जब सारी दुनिया का
सूनापन, हम सहें।
हर एक ख़ुशी का पल
हमसे अलग हो रहा है
उस पर गुमान ये कि
चेहरा तो हँसता रहा है।
कांपते हाथों से शब्द क्यूँ लिखें
जब अपने सारे पन्ने
सिर्फ सफ़ेद, सूने
और कोरे ही रहें।
एक बूँद पानी की टप कर बोली
'जीवन का सार है ये'
सदा चुप, सहते ही रहें
बेरंग, नमक से भरी ये बूँद
सूख चुकी अब, बोली
परिवर्तन कि चाह में
यूँ ही पल, हर पल
चलते ही रहें, चलते ही रहें।।
No comments:
Post a Comment