Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, July 12, 2012

'तुम...'




मन

तुमसे कुछ कहूँ...

कि तुम,
विश्वास हो हर रीत का
मन में छिपी उस प्रीत का
हारे हुए की अंतिम जीत का

तुम,
शक्ति हो हर आह में
रौशनी, निशा की हर राह में
माँ की ममतामयी चाह में

तुम,
छाया हो तपती धूप में
करुणा के प्रतिरूप में
जीवन के हर सुकून में

तुम,
विस्तार हो अंत का
एहसास मीठी सी छुअन का
सोंधी मिट्टी में नए जनम का

मन
तुमसे कुछ कहूँ...?

1 comment:

  1. शुक्रियाआपके शब्दों के लिए...

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