Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, July 21, 2012

तुझपे ऐतबार क्यों है...


अब मैं क्या कहूँ तुझसे
बातें हैं ना जाने कितनी
वक़्त अब थम सा गया है
सांसें बस कुछ है बचीं
तू क्यूँ कहता नहीं मुझसे
तड़प तेरे दिल में है जो छिपी
अपने सिले लबों को खोल दे
तुमने अब तक कहा नहीं
कुछ बेवक्त नहीं है ए खुदा
कह दे, नहीं जाता अब सहा
क्यूँ है ये इंतज़ार
क्यों है तुझपे ऐतबार
क्या ये नफरत है
या है ये तेरा प्यार
समझा नहीं जाता मुझसे
तू खुद में बसा ले मुझे
अपनी बाहों में
दिल की पनाहों में
मिला दे मुझे-

तेरी तनहाइयों से
आँखों की गहराईयों से
गम की परछाइयों से
अब आ भी जा मेरे खुदा
बस कर बहुत हो चुका

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