सुबह, कोयल की सी मीठी आवाज़
जैसे छेड़ दिया हो तुमने
सितार पर मधुर मेघ-राग
तुम्हारा यूँ कुम्हलाना
मुझे सुनकर
एकाएक चुप हो जाना
हौले-हौले मुझमें
समाते जाना
दूर रहकर भी पास,
बहुत पास आना
मद्धम से कहना
कि तुम हो, मैं हूँ
और महकती हुई सांसें
मुंदी आँखों से
कल्पनाओं में गोते खाती
धुंधली कुहासें
सुर्ख गुलाबी होंठो का
मुस्कुराकर मुझे पुकारना
एहसास होते ही,
शरारत भरी अठखेलियों का;
तकिये में चेहरा छिपा लेना
और मुझे प्यार भरी
झिड़की लगाना
सारी उमर साथ रहने का
वादा निभाना
मुझमे समा जाने को
फिर से झगड़ना
नाराज़गी भरे लहज़े में
मुझसे गले लगने कि जिद करना
मेरे 'हाँ' कहते ही
अपनी बाँहों में जकड़ना
उस पल को थामे
सारी खुशियों को
एक पल में समेट लेना
कहाँ खो गया ये
अमिट एहसास
तुम दूर तो हो मुझसे
पर सच कहूँ-
अब हो बिलकुल पास
ना ही है ये प्रेम पाती
ना कोई मनुहार
हैं कुछ कोमल शब्द
और थोड़ा सा प्यार...
No comments:
Post a Comment