Wednesday, December 31, 2014
97
अनगिनत दीवारों की परतों को
करीब से देखने की ख्वाइश सी जगी है दिल में
आज, कल या शायद परसों-
इनकी परतों से आंसुओं को बहते देखा था
परत दर परत
आंसू धुंधले हो चले थे
उन्हीं दीवारों के पीछे
कहकहों की आवाज़ें गूँज रही थीं
उसी गूँज में कहीं किसी का सिसकना
मेरी ख्वाइश और दीवार की ज़िन्दगी से
अनचाहा मेल खा रही थी
बेपरवाह 'मैं'!
The lonely play
The lonely play
मुझे 'मैं' पसंद नहीं
और मुझमें छिपा वो
दोनों में कोई सामंजस्य ही नहीं
एक कहता- रुक जाओ, दूसरा कहे- बस चलते रहो
अरे कोई इस शोर को भी तो देखो
न सको देख, तो कम से कम सुन तो लो
देखा? सुना?
या आँखें कर लीं बंद
अनसुना कर दिया
बड़ा रहस्यमयी है ये मैं
और ये शोर भी
साठ गाँठ लगती है मुझे तो कुछ इनकी
इंतज़ार है मुझे अब
इस मैं के सो जाने का
इस बेपरवाह
शोर के थम जाने का
फिर आएगी वो नींद
गहरी, मखमली सुनहरी
Picture credit: www.naturemoms.com
और मुझमें छिपा वो
दोनों में कोई सामंजस्य ही नहीं
एक कहता- रुक जाओ, दूसरा कहे- बस चलते रहो
अरे कोई इस शोर को भी तो देखो
न सको देख, तो कम से कम सुन तो लो
देखा? सुना?
या आँखें कर लीं बंद
अनसुना कर दिया
बड़ा रहस्यमयी है ये मैं
और ये शोर भी
साठ गाँठ लगती है मुझे तो कुछ इनकी
इंतज़ार है मुझे अब
इस मैं के सो जाने का
इस बेपरवाह
शोर के थम जाने का
फिर आएगी वो नींद
गहरी, मखमली सुनहरी
Picture credit: www.naturemoms.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
ईश्वर ने मांगी एक दुआ
God, a well wisher
God, a well wisher
बेहद सहज और सुन्दर कोमल
था उसका एहसास
सारे ग़मों से दूरी हो गयी
खुशियाँ हो गयीं पास
समय ने ली ऐसी छलांग की
हर दिन अपना लागे
और रातों को नजदीक से देखा
वो सरपट दौड़ा भागे
उसके समीप्य में समझा मैंने
अपनापन था कहीं पर छुपा हुआ
अब तक मांगे था इंसान हमेशा
फिर ईश्वर ने मांगी एक दुआ
कि उसका साथ रहे मेरा ही
चाहे सब कुछ छूट ही जाये
बाकी सब तो मोह माया है
जाने जो साधू कहलाए
Picture credit: www.kickofjoy.com
था उसका एहसास
सारे ग़मों से दूरी हो गयी
खुशियाँ हो गयीं पास
समय ने ली ऐसी छलांग की
हर दिन अपना लागे
और रातों को नजदीक से देखा
वो सरपट दौड़ा भागे
उसके समीप्य में समझा मैंने
अपनापन था कहीं पर छुपा हुआ
अब तक मांगे था इंसान हमेशा
फिर ईश्वर ने मांगी एक दुआ
कि उसका साथ रहे मेरा ही
चाहे सब कुछ छूट ही जाये
बाकी सब तो मोह माया है
जाने जो साधू कहलाए
Picture credit: www.kickofjoy.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
दोस्ती थी दो दुश्मनों में
Innocent friendship...
Innocent friendship...
दोस्ती थी दो दुश्मनों में
और ईमानदारी भी बहुत थी
उनके रिश्ते में दोस्तों
दिलदारी बहुत थी
किसी को कहते सुना मैंने
वो पहले सिरफ
एक दूसरे को जानते भर थे
समय बीतता गया
अब वो
खुद को नहीं पहचानते भर थे
फिर दुश्मनी का
धीरे धीरे आगाज़ हुआ
दोस्ती पर लगा ग्रहण
अब कोई उनका हमराज़ ना हुआ
साथ देने को तन्हाइयों का साथ
ही दीख पड़ता है उनको
दोस्त थे जब
भुला देते थे हर एक गम को
काश ये दुश्मन
अब फिर से दोस्त बन जाएं
और फिर से वही
एक छोटी सी दुनिया बनाएं
Picture credit: http://t.wallpaperweb.org
और ईमानदारी भी बहुत थी
उनके रिश्ते में दोस्तों
दिलदारी बहुत थी
किसी को कहते सुना मैंने
वो पहले सिरफ
एक दूसरे को जानते भर थे
समय बीतता गया
अब वो
खुद को नहीं पहचानते भर थे
फिर दुश्मनी का
धीरे धीरे आगाज़ हुआ
दोस्ती पर लगा ग्रहण
अब कोई उनका हमराज़ ना हुआ
साथ देने को तन्हाइयों का साथ
ही दीख पड़ता है उनको
दोस्त थे जब
भुला देते थे हर एक गम को
काश ये दुश्मन
अब फिर से दोस्त बन जाएं
और फिर से वही
एक छोटी सी दुनिया बनाएं
Picture credit: http://t.wallpaperweb.org
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
तमाशबीन
The lonely play
The lonely play
तमाशबीनों की दुनिया में
मैंने भी एक खेल था खेला
भीड़ बहुत थी सब ओर वहां पर
पर था मैं बिलकुल अकेला
लोग हंसे जब मैं था रोया
वो और हंसे, मैंने सब खोया
जब मेरे हंसने की बारी आयी
टूटा मेरा ख्वाब सुनहला
Picture credit: www.images.entertainment.ie
मैंने भी एक खेल था खेला
भीड़ बहुत थी सब ओर वहां पर
पर था मैं बिलकुल अकेला
लोग हंसे जब मैं था रोया
वो और हंसे, मैंने सब खोया
जब मेरे हंसने की बारी आयी
टूटा मेरा ख्वाब सुनहला
Picture credit: www.images.entertainment.ie
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
Tuesday, December 30, 2014
निरंकुशता
Absoluteness- The real meaning of love and life
Absoluteness- The real meaning of love and life
निरंकुश है वो जिसमेँ प्रेम है
कि जैसे गंगा
कि जैसे राधा
इतने पवित्र हैं दोनों
कि जैसे ईश्वर का रूप हो इनमें
आधा आधा
एक निकली थी शिव जटाओं से
दूजी रहती थी श्यामल छाँव में
एक जीवनदायनी गंगा है
दूजी बड़भागिनी सुनंदा है
एक भागीरथी के तप का प्रमाण है
दूजी का प्रेम मनोहर अभिमान है
निरंकुशता ही जीवन का सार है
खोखले जीवन पर कटु प्रहार है
प्रेम साधना का ही प्रतिरूप है
कभी डमरू तो कभी मुरली में ढला रूप है
Picture credit: www.imgion.com and www.baggout.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
काटों संग फूल
Beautiful Thorn and Flower
Beautiful Thorn and Flower
राह पर कुछ कांटें
काँटों संग हैं कुछ फूल
दोनों ही कृतियाँ तेरी हैं मालिक
काटें चुनूं या फूल
फूल चुनूं तो महक हाथ आती
काटों से मिलती चुभन है
दूर तलक सोचा तब जाना
इन दोनों का साथ ही जीवन है
फूलों का अर्पण कर देना
और काटों का हो तर्पण
दोनों का समुच्य ही सम्पूर्णता है
जिसमें छिपा है जीवन दर्शन
एक है कोमलता का द्योतक
तो दूजा है शक्ति प्रदाता
जिसने समझा इस अनुपम सत्य को
वो ही महा मनस्वी कहलाता
Picture credit: www.morninglorysunrise.blogspot.in
काँटों संग हैं कुछ फूल
दोनों ही कृतियाँ तेरी हैं मालिक
काटें चुनूं या फूल
फूल चुनूं तो महक हाथ आती
काटों से मिलती चुभन है
दूर तलक सोचा तब जाना
इन दोनों का साथ ही जीवन है
फूलों का अर्पण कर देना
और काटों का हो तर्पण
दोनों का समुच्य ही सम्पूर्णता है
जिसमें छिपा है जीवन दर्शन
एक है कोमलता का द्योतक
तो दूजा है शक्ति प्रदाता
जिसने समझा इस अनुपम सत्य को
वो ही महा मनस्वी कहलाता
Picture credit: www.morninglorysunrise.blogspot.in
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, December 29, 2014
...तो क्या हो?
What if, I...?
What if, I...?
तारतम्य बिठाने को
यदि मैं बिखर भी जाऊँ तो क्या हो
रोते हुए को हँसाने को
यदि मैं कभी मुस्कुरा ना पाऊँ तो क्या हो
है सब्ज़ बाग़ ये ज़िन्दगी
मैं ये खुद ना समझ पाऊँ तो क्या हो
सारी बातें दिल से ही कहूँ
आँखों से कुछ भी ना समझा पाऊँ तो क्या हो
हुआ जब भी है कोई गुनाह
मैं बस आँखें मूँद के रह जाऊँ तो क्या हो
ना रहे कोई आवाज़ उठाने को
और मैं भी चुप ही रह जाऊँ तो क्या हो
आये शर्म मुझे तो भी मैं
बिलकुल भी ना शरमाऊँ तो क्या हो
जन्नत की बातें सारी उम्र करूँ
पल में दोज़ख ही पहुँच जाऊँ तो क्या हो
Picture credit: www.onewithnow.com
यदि मैं बिखर भी जाऊँ तो क्या हो
रोते हुए को हँसाने को
यदि मैं कभी मुस्कुरा ना पाऊँ तो क्या हो
है सब्ज़ बाग़ ये ज़िन्दगी
मैं ये खुद ना समझ पाऊँ तो क्या हो
सारी बातें दिल से ही कहूँ
आँखों से कुछ भी ना समझा पाऊँ तो क्या हो
हुआ जब भी है कोई गुनाह
मैं बस आँखें मूँद के रह जाऊँ तो क्या हो
ना रहे कोई आवाज़ उठाने को
और मैं भी चुप ही रह जाऊँ तो क्या हो
आये शर्म मुझे तो भी मैं
बिलकुल भी ना शरमाऊँ तो क्या हो
जन्नत की बातें सारी उम्र करूँ
पल में दोज़ख ही पहुँच जाऊँ तो क्या हो
Picture credit: www.onewithnow.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastav
Saturday, December 27, 2014
करुणा का आँचल
Krishna- Compassion possible
Krishna- Compassion possible
नहीं मिटेगा नहीं मिटेगा चहुंओर फैला अंधियाला
जब तक हृदय पीता रहेगा अमृत रुपी विष का प्याला
नहीं होगी सुबह सुहानी जब जब डसेंगे सर्प विषैले
मृतप्राय हो जायेगा जीवन सबके मन हो जायेंगे मैले
रक्त बहेगा नदियों में तब इंसान जानवर बन जायेगा
एक दूसरे को चीरेगा बिन मारे फिर वो खायेगा
प्रेम रहेगा जंजीरों में, विश्वासघात सुन्दर आसन पर होगा
करुणा भी अब मौन रहेगी चहुंओर दुःशासन होगा
**************************************
अंधियाले की बात निराली तब है जब तक दीप नहीं है
एक किरण के आ जाने से अंधियाले का अस्तित्व नहीं है
सुबह सुहानी हो ही जाती यदि सर्पों को कुचला जाता
जीवन मृत्यु सार सत्य है कोई इनसे बच नहीं पाता
नदियों में शीतल जल होता यदि कहीं रक्तपात ना होता
इंसान भी इंसान ही होता, जानवर का साथ ना होता
जंजीरें प्रेम की टूट ही जाती, विश्वासघात भी मूर्छित होता
करुणा का आँचल शब्दों संग कृष्ण भाव से अर्जित होता
Picture credit: www.fantheember.com
जब तक हृदय पीता रहेगा अमृत रुपी विष का प्याला
नहीं होगी सुबह सुहानी जब जब डसेंगे सर्प विषैले
मृतप्राय हो जायेगा जीवन सबके मन हो जायेंगे मैले
रक्त बहेगा नदियों में तब इंसान जानवर बन जायेगा
एक दूसरे को चीरेगा बिन मारे फिर वो खायेगा
प्रेम रहेगा जंजीरों में, विश्वासघात सुन्दर आसन पर होगा
करुणा भी अब मौन रहेगी चहुंओर दुःशासन होगा
**************************************
अंधियाले की बात निराली तब है जब तक दीप नहीं है
एक किरण के आ जाने से अंधियाले का अस्तित्व नहीं है
सुबह सुहानी हो ही जाती यदि सर्पों को कुचला जाता
जीवन मृत्यु सार सत्य है कोई इनसे बच नहीं पाता
नदियों में शीतल जल होता यदि कहीं रक्तपात ना होता
इंसान भी इंसान ही होता, जानवर का साथ ना होता
जंजीरें प्रेम की टूट ही जाती, विश्वासघात भी मूर्छित होता
करुणा का आँचल शब्दों संग कृष्ण भाव से अर्जित होता
Picture credit: www.fantheember.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Wednesday, December 24, 2014
मृत सवेरा और मसीह
The dead dawn and Christ
The dead dawn and Christ
विस्मृत करती हैं मुझे कुछ छोटी छोटी सी बातें
जैसे नदिया क्यों बहती है और क्यों होती हैं रातें
क्यों आता है सुख, और आकर जाता ही क्यों है
इन सबका कारण मैं नहीं इन सबका कारण तू है
क्यों ठिठुरन इतनी बढ़ती है कि मानव सो ही जाता है
क्यों सवेरा होने पर वो घनघोर अँधेरा पाता है
क्यों हृदय विदारक घटनाएं हर रोज यहाँ पर होती है
जब सारी दुनिया सोती है क्यों सच्चाई अकेली रोती है
क्यों होता है क्रोध का जन्म जब करुणा तेरी ही संतान है
ये तेरी ही तो करनी थी अब क्यों तू इतना हैरान है
क्यों अग्नि की बरसातें हैं जब शीतल जल भी होता है
क्यों सब कुछ इतना मुश्किल है जब जीवन सरल ही होता है
क्यों होता है ये युद्ध धरा पर, क्यों रक्त कटारें चलती हैं
क्यों नित दिन कोई नाहक मरता है, ना हृदय दीवारें पिघलती हैं
क्यों होता है आसाम यहाँ जब सघन अँधेरा होता है
क्यों यीशु के जन्म से पहले एक मृत सवेरा होता है
Picture credit: www.ibtimes.com
जैसे नदिया क्यों बहती है और क्यों होती हैं रातें
क्यों आता है सुख, और आकर जाता ही क्यों है
इन सबका कारण मैं नहीं इन सबका कारण तू है
क्यों ठिठुरन इतनी बढ़ती है कि मानव सो ही जाता है
क्यों सवेरा होने पर वो घनघोर अँधेरा पाता है
क्यों हृदय विदारक घटनाएं हर रोज यहाँ पर होती है
जब सारी दुनिया सोती है क्यों सच्चाई अकेली रोती है
क्यों होता है क्रोध का जन्म जब करुणा तेरी ही संतान है
ये तेरी ही तो करनी थी अब क्यों तू इतना हैरान है
क्यों अग्नि की बरसातें हैं जब शीतल जल भी होता है
क्यों सब कुछ इतना मुश्किल है जब जीवन सरल ही होता है
क्यों होता है ये युद्ध धरा पर, क्यों रक्त कटारें चलती हैं
क्यों नित दिन कोई नाहक मरता है, ना हृदय दीवारें पिघलती हैं
क्यों होता है आसाम यहाँ जब सघन अँधेरा होता है
क्यों यीशु के जन्म से पहले एक मृत सवेरा होता है
Picture credit: www.ibtimes.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, December 22, 2014
Do you read me?
I saw you again, in my dreams. You did not fight with me today but you loved me. You were caressing me with all your heart. And your hug; it was all the same that you used to pour over me every time we met. I wanted to but could not find mere a second of your fake love. It was all true that I always saw in you. I was telling you when we first met and you were late, to bring me those beautiful red roses.
Roses! Our love is no different of that bunch of roses. It had beauty and fragrance. It had the power to sustain among thorns of life. But It had a true life that it had to end one day.
"I kill you."- you said that to me. And I could only smile. You winked. I smiled. You smiled. I smile even today when I saw you again, in my dreams.
"Do you read me?"- I asked.
I had to wake up, you never replied.
Picture credit: www.viwallpaper.com
Roses! Our love is no different of that bunch of roses. It had beauty and fragrance. It had the power to sustain among thorns of life. But It had a true life that it had to end one day.
"I kill you."- you said that to me. And I could only smile. You winked. I smiled. You smiled. I smile even today when I saw you again, in my dreams.
"Do you read me?"- I asked.
I had to wake up, you never replied.
Picture credit: www.viwallpaper.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Wednesday, December 17, 2014
पेशावर की लाल धरती
Peshawar- The Massacre
Peshawar- The Massacre
छद्म था वो आवरण
जिसपर चढ़ा था स्वर्ण रंग
कीचड़ सा था उनका हृदय
मिथ्या रंगों का क्या करे
नयन हुए थे चकाचौंध
बढ़ चला उनको वो रौंद
गतिहीन थी उसकी ये चाल
धरती हुई थी रक्त लाल
सूना था आँचल सूखे थे आंसू
सब छिन गया किसको क्या बांटू
दुनिया भी चीखी ईश्वर भी रोया
किसने क्या पाया किसने क्या खोया
अब अति हुई और बहुत हुई
अब खुल चुकी है सारी कलई
घट भर चुका है पाप का
अमानवीयता की हर बात का
क्रूरता अपने चरम पर है
क्या बात सिर्फ धरम पर है?
Picture credit: http://www.vocativ.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, December 15, 2014
और फिर एक सुबह हुई
The New Dawn
The New Dawn
और फिर एक सुबह हुई
लंबी कारी रात के बाद
जब पसरा हुआ था सन्नाटा
और दूर कहीं सियारों की आवाज़ें
रह रहकर भयाक्रांत कर रहीं थीं
ढिबरी की जलती बुझती रौशनी
सांय सांय करती हवा
और खरखराते उड़ते पत्तों की आवाज़ें
रीती हुई ज़िन्दगी की
अनकही कहानियां कह रहे थे
अंगीठी में जल चुकी
पुरानी लकड़ी की राख की महक
उनकी सिंकन से सखत पीले हुए हाथ
मन के आँगन को
कोमल कर देना चाहती थीं
पर क्या भूखा तन
सहमा, रोता बचपन
इस विचार से अनभिज्ञ नहीं था
कि सुबह तो होनी ही थी
और फिर एक सुबह हुई
सियारों ने चीखना बंद कर दिया अब
भय भी था मिट चुका तब तक
ताख को अपनी कालिमा देकर
बुझ चुकी थी ढिबरी भी
नहीं थी अब कोई महक
जल चुकी पुरानी लकड़ियों की
ना चल रही थी कोई हवा
ना उड़ रहे एक भी पत्ते
सखत हुए पीले हाथ
अब तक थे मर चुके
संजोये हुए अपने हाथों में
अपने ही अंश को
और धुंए से काला हुआ आंसू
सूखकर भी ना भुला पाया इस दंश को
रह गयी थी तो बस
एक सुबह- भूखी मरी हुई
और विचारों की वही अनभिज्ञता
Picture credit: www.en.auschwitz.org
लंबी कारी रात के बाद
जब पसरा हुआ था सन्नाटा
और दूर कहीं सियारों की आवाज़ें
रह रहकर भयाक्रांत कर रहीं थीं
ढिबरी की जलती बुझती रौशनी
सांय सांय करती हवा
और खरखराते उड़ते पत्तों की आवाज़ें
रीती हुई ज़िन्दगी की
अनकही कहानियां कह रहे थे
अंगीठी में जल चुकी
पुरानी लकड़ी की राख की महक
उनकी सिंकन से सखत पीले हुए हाथ
मन के आँगन को
कोमल कर देना चाहती थीं
पर क्या भूखा तन
सहमा, रोता बचपन
इस विचार से अनभिज्ञ नहीं था
कि सुबह तो होनी ही थी
और फिर एक सुबह हुई
सियारों ने चीखना बंद कर दिया अब
भय भी था मिट चुका तब तक
ताख को अपनी कालिमा देकर
बुझ चुकी थी ढिबरी भी
नहीं थी अब कोई महक
जल चुकी पुरानी लकड़ियों की
ना चल रही थी कोई हवा
ना उड़ रहे एक भी पत्ते
सखत हुए पीले हाथ
अब तक थे मर चुके
संजोये हुए अपने हाथों में
अपने ही अंश को
और धुंए से काला हुआ आंसू
सूखकर भी ना भुला पाया इस दंश को
रह गयी थी तो बस
एक सुबह- भूखी मरी हुई
और विचारों की वही अनभिज्ञता
Picture credit: www.en.auschwitz.org
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Friday, December 12, 2014
The hug
It has happened with us, rather we have experienced it a few times. In real a very few.
First, when we born. It has something in it, something unique, something Godly in nature. Its uniqueness is it's USP, not the selling proposition but the unique surviving paradigm that God has fruited us with. The power of its feel is warm in any bad phase of life which awakens our hearts whenever we are literally shivering of coldness in life.
Since the impractical practicality has bared us to be emotional with each other we have to understand, sometimes intentions are meant to be fake and unreal. Then intentions has nothing to do with emotions but to play with it.
Now if we talk about a child, the cycle gets completed. If you flip the pages of your life to the very first page you will get to know that it was all true. The same warm feeling touches your heart once again. It has same power as it had then.
The hug.
A mother's hug, a child's hug.
An emotional hug.
A hug when someone cries.
A hug when we smile.
A hug in faith.
A hug of love trait.
A hug when we are low.
A hug when the eyes get closed.
Picture credit: www.hdwallpapers.in
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Thursday, December 11, 2014
The reality check- All is Black
The day and the night
seems to be together at times but are they really so, together. I have asked
this question many a times to myself. Somehow, I almost got the answer once. I
was about to reach that conclusion and suddenly what I saw, the emptiness between
them. The connecting thread was broken into pieces that might have shown their
reality.
They are now complete in nature;
on the other hand none is indeed. I'm skeptical though I'm not confused rather
quiet sure that they never meant to be together. How it all started and when or
even it ever started in real or not? These answers shall have an essence of
strangeness in them.
What if one day they meet
again, what if one night they know each other? Not possible; people says so
moreover science proves it. Laughter! I don’t consider science or people or
anything superior than Him, The creator. Does He exist? Period.
And to challenge their
distinct existence one has to sleep considering the fact that all is black
which won’t really differentiate their co-existence but prove it. This contradiction
will be the answer of togetherness.
The day and the night are
one.
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Tuesday, December 9, 2014
ज़िन्दगी फिर से गुलज़ार होगी
The day will come, soon
The day will come, soon
उसने अपने अंदर सहमी हुई ताक़त को नज़रअंदाज़ कर दिया
वो भूल गया कि ये वही था जिसने
उन तमाम गुमनामियों को ज़िंदगानियों में था कभी तब्दील किया
तब वो सहमे थे, और डरे भी थे अपनी हार की नुमाइशों पर
और इसने ही संभाला था उन्हें अपने प्यार की पैमाइशों पर
आज वक़्त है उसे खुद का क़द्र करने की
वो वक़्त दूर नहीं जब ज़िन्दगी फिर से गुलज़ार होगी
Picture credit: www.easybranches.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, December 8, 2014
एक उनींदी सी आह
A tale of last sigh
A tale of last sigh
आँखों का गरम पानी क्यों रह रहकर तुम्हारे कोरों पर रुकता है?
फूल मुरझाकर टूटता है, बिखरता है पर सदा यूँ ही महकता है
क्यों तुम्हारे अंदर की आंधी उदासी से भरी होती है
आंधियाँ जब थमती हैं जिंदगी को नई दिशाएं मिलती है
एक उनींदी भरी आह मुझसे बोली
ये आँखों का पानी नहीं समंदर है मेरी आहत भावनाओं का
फूलों का महकना यदि सत्य है तो आखिर वो जीवित ही क्यों होता है
यदि आंधी ना होती उदासी में तो दुनिया सदा ही रोती रहती
जिंदगी जब थमती है तो दिशाएं भी बिखर जाया है करती
मेरे उत्तर को सुनकर आह मंद पड़ गयी
Picture credit: www.livelightbeing.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Saturday, November 29, 2014
आखिरी चेतावनी
NO MORE rape culture
NO MORE rape culture
उसने किया था युद्ध इन्हीं ढोंगी रक्षकों से
बचाने को अपनी अस्मिता, अपना सम्मान
लड़ती रही वो आख़िर तक
हे नीच समाज! नहीं नीचा हुआ उसका मस्तक
उनपर बिफरती हुई चेतावनी दे रही है
कि होकर परास्त-
फट जायेगी ये धरती
और फिर कभी ना संवरेगी
Picture credit: www.brstarcenter.wordpress.com
बचाने को अपनी अस्मिता, अपना सम्मान
लड़ती रही वो आख़िर तक
हे नीच समाज! नहीं नीचा हुआ उसका मस्तक
उनपर बिफरती हुई चेतावनी दे रही है
कि होकर परास्त-
फट जायेगी ये धरती
और फिर कभी ना संवरेगी
Picture credit: www.brstarcenter.wordpress.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
सुलगती कहानियाँ
Dead Mentality
Dead Mentality
उन जला दिए गए घरों से उठता धुँआ
और चारों ओर बिखरी लाशों के टुकड़े
कल बीत चुकी ज़िन्दगी की
मिट चुकी कई लकीरों की,
सुलगती हुई कहानियाँ कह रही है
कि काश-
कोई होता अपना सा
बंद आँखों का सपना सा
Picture credit: www.wallpapername.com
और चारों ओर बिखरी लाशों के टुकड़े
कल बीत चुकी ज़िन्दगी की
मिट चुकी कई लकीरों की,
सुलगती हुई कहानियाँ कह रही है
कि काश-
कोई होता अपना सा
बंद आँखों का सपना सा
Picture credit: www.wallpapername.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Thursday, November 27, 2014
...उदासी मुस्कुरा उठी...
..Smiling Melancholy..
..Smiling Melancholy..
सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
जल तरंगों की अठखेलियां
रेत का उसके पैरों को सहलाना
और कुछ सुनहरी यादों का सहाय्य
कि जैसे उस चित्रकार और उसकी कूची
का रंगीन खेल खेला जा रहा हो
यथार्थ की बहती नम हवा
मद्धम मद्धम उसके उदास पहनावे को
अपनी गरिमयी कान्ति से
सुखद बनाने को तत्पर हैं
साथ ही कुछ सुफैद और कुछ काली सीपियाँ
अपने खुरदुरे एहसास के श्वास से
जीवित हो उठे हैं
चंद्र किरणों से बना मोती भी
इस प्राकृतिक सौम्यता का साक्षी बन गया है
उदासी जाने कहाँ खो गयी है
किन्हीं रंगों संग
सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
Picture credit: www.mixcloud.com
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
जल तरंगों की अठखेलियां
रेत का उसके पैरों को सहलाना
और कुछ सुनहरी यादों का सहाय्य
कि जैसे उस चित्रकार और उसकी कूची
का रंगीन खेल खेला जा रहा हो
यथार्थ की बहती नम हवा
मद्धम मद्धम उसके उदास पहनावे को
अपनी गरिमयी कान्ति से
सुखद बनाने को तत्पर हैं
साथ ही कुछ सुफैद और कुछ काली सीपियाँ
अपने खुरदुरे एहसास के श्वास से
जीवित हो उठे हैं
चंद्र किरणों से बना मोती भी
इस प्राकृतिक सौम्यता का साक्षी बन गया है
उदासी जाने कहाँ खो गयी है
किन्हीं रंगों संग
सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
Picture credit: www.mixcloud.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Tuesday, November 25, 2014
रुक भी जा हे तुच्छ मानव!
Earth is dying, so the humanity
Earth is dying, so the humanity
इंगित करती हैं भावनायें उन रहस्यों की बानगी
जिनमें छिपा है सार सत्य और पर्दा कभी उठता नहीं
स्वीकारता है तुच्छ मानव अस्तित्व की अंधी दौड़ को
थक हारकर रुकता है फिर, न पाता है अपने ठौर को
बेड़ियों में जकड़कर स्वयं को पाता है वो रोता बिलखता
सत्य क्या है जाने क्या वो, जो असत्य को है सत्य समझता
चलता ही जाता लक्ष्यहीन मानव भय को साथी मानकर
होती कहाँ उसकी विजय है बिन सत्य को पहचानकर
अब खड़ा है वो ऊँचे पर्वतों पर जो अनगिनत रहस्यों से हैं बने
कुछ जड़ हैं तो कुछ खोखलें, जिनमें वो अपनी ही आवाज़ें सुने
धिक्कारती हैं वो उसे हर पाप क्षण को साक्ष्य मानकर
टस से मस होता नहीं वो इस अकाट्य सत्य को जानकर
उसका चरित्र तो रक्तिम ही था ये पर्वतों ने भी माना है
उसके सिवा उसका ही सत्य बस बाकियों ने जाना है
रुक भी जा हे तुच्छ मानव! विष वमन अब छोड़ दे
नहीं करूँगा क्षमा तुझे अब, यदि रोता रहा मेरा हृदय
Picture credit: mynatureonline.blogspot.com
जिनमें छिपा है सार सत्य और पर्दा कभी उठता नहीं
स्वीकारता है तुच्छ मानव अस्तित्व की अंधी दौड़ को
थक हारकर रुकता है फिर, न पाता है अपने ठौर को
बेड़ियों में जकड़कर स्वयं को पाता है वो रोता बिलखता
सत्य क्या है जाने क्या वो, जो असत्य को है सत्य समझता
चलता ही जाता लक्ष्यहीन मानव भय को साथी मानकर
होती कहाँ उसकी विजय है बिन सत्य को पहचानकर
अब खड़ा है वो ऊँचे पर्वतों पर जो अनगिनत रहस्यों से हैं बने
कुछ जड़ हैं तो कुछ खोखलें, जिनमें वो अपनी ही आवाज़ें सुने
धिक्कारती हैं वो उसे हर पाप क्षण को साक्ष्य मानकर
टस से मस होता नहीं वो इस अकाट्य सत्य को जानकर
उसका चरित्र तो रक्तिम ही था ये पर्वतों ने भी माना है
उसके सिवा उसका ही सत्य बस बाकियों ने जाना है
रुक भी जा हे तुच्छ मानव! विष वमन अब छोड़ दे
नहीं करूँगा क्षमा तुझे अब, यदि रोता रहा मेरा हृदय
Picture credit: mynatureonline.blogspot.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Friday, November 21, 2014
काश ऐसा मेरा एक गुलिस्तां होता
"Irony Of Life"
"Irony Of Life"
पेड़ों को काटा होता तो मेरा भी एक मकान होता
हाथों में भी ख़ुशबू होती ग़र मैंने फूल तोड़े होते
इंसान तो ना सही, हाँ बस थोड़ा हैवान होता
बेख़ौफ़ सबसे रहता अपनी खाली हुकूमत में
पर ये तभी होता, ना मुझ सा जहाँन होता
हर ओर खून बहता जब मेरी कटार चलती
एक एक कतरा बहता ये दिल बेजान होता
रूहानियत ना होती मैं उसके रूबरू होता
इंसानियत ना होती, कितना सुकून होता
मैं उससे सवाल करता इन सारी वजहों की
ज़ालिम खुदा भी अब बेज़ुबान होता
मैं अगला जनम भी लेता इसी हक़ से लेकिन
खुदा जाने किसका इसमें एहसान होता?
मुस्कुराता मैं अब तो अपनी शिकस्त पर खुलकर
काश मेरा ऐसा एक गुलिस्तां होता
Picture credit: www.vineetchhajer.wordpress.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Wednesday, November 19, 2014
Realm of Love Ocean
"The
river of spontaneous thoughts forming a world of emotions tells us the ground
reality of our conscience which takes us to the realm of Love Ocean. And we
find peace in there. Past becomes past and we do not think about future at all.
We live in present. We respect it. And in return, present loves us.
Every tear
drop which finds its way straight from your bright eyes to the resounding heart
conveys warmness and it converts itself into a little curve, we call it smile
from heart. The thoughts, the tears and smile all put together make a life which is
destined to reflect its respective purposes and the purpose helps you to think
spontaneously."
She held his childhood picture in her hand clinching it the closest to her heart so that he might never leave. She realized warmness in her eyes. Warm tears. She was crying. But past is past. As soon as she knew the reality, his image found its way straight towards her heart. She found him in real. He smiled in his realm of Love Ocean.
Picture credit: tumblr.com
(Note- No part of
this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any
form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, November 17, 2014
The edge and beyond
"To intensify the love, one of the
most beautiful creation of God, one must reach the edge of compassion without
following the rule-book of love. Rules bind you, they stop you to reach the
real destination of life.
And to glorify love one have to cross that
edge which is filled with abundant memories, few good some bad. Bad memories
are the reasons of following the sacred book of love rules. While compassion
gives you good memories but the path of this edge and beyond is immense in
nature.
Here and there, everywhere you can find the
only reason of life; love and if you are true to yourself you can attain peace
in its origin, the compassion."
She thought that he is dead but she could
not understand what he had achieved whence he left this world full of hatred.
In life she only gave him what he never
deserved. After life he got everything beyond the edge.
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Saturday, November 15, 2014
रंगीन हथेलियाँ Innocent Colours
इन तमाम रंगों की महक
और इनकी रंगीनियत को
दोनों हथेलियों पर रखकर
तौलने से होता एहसास
रंगों के एकाकीपन को
और उनके सुन्दर मन को
भ्रमित सा कर देता है
उन्हें समझ नहीं पाता
जब तक उनमें तारतम्य बैठे
हर एक रंग अपनी अमिट छाप
छोड़ देना चाहता है
बिना ये जाने कि आखिर
ये कोमल हथेलियाँ चाहती क्या हैं
ये रंग
और भी गहरे होते जाते हैं
गाढ़ा लाल, कुछ कुछ काला
जैसे मरे हुए खून का रंग
जिसे खरोंचने पर
वो नाखूनों में फंस जाया करता है
उसकी ना मिटने वाली इच्छा
अमर हो जाती है
रंगों की महक
और इसकी रंगीनियत
बोझिल सी लगने लगती है
हाँ ये बात और है
कि इन्हीं रंगों से
इंद्रधनुष भी बनता है
पर इसके लिए
मेघों का बरसना
कितना ज़रूरी है
ये कोई इन हथेलियों से पूछे
कभी तो......
Picture credit: www.wallippo.com
और इनकी रंगीनियत को
दोनों हथेलियों पर रखकर
तौलने से होता एहसास
रंगों के एकाकीपन को
और उनके सुन्दर मन को
भ्रमित सा कर देता है
उन्हें समझ नहीं पाता
जब तक उनमें तारतम्य बैठे
हर एक रंग अपनी अमिट छाप
छोड़ देना चाहता है
बिना ये जाने कि आखिर
ये कोमल हथेलियाँ चाहती क्या हैं
ये रंग
और भी गहरे होते जाते हैं
गाढ़ा लाल, कुछ कुछ काला
जैसे मरे हुए खून का रंग
जिसे खरोंचने पर
वो नाखूनों में फंस जाया करता है
उसकी ना मिटने वाली इच्छा
अमर हो जाती है
रंगों की महक
और इसकी रंगीनियत
बोझिल सी लगने लगती है
हाँ ये बात और है
कि इन्हीं रंगों से
इंद्रधनुष भी बनता है
पर इसके लिए
मेघों का बरसना
कितना ज़रूरी है
ये कोई इन हथेलियों से पूछे
कभी तो......
Picture credit: www.wallippo.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Thursday, November 13, 2014
Mysterious Reasons Of Death
"To be inhuman is far easy than to be a human. It needs great courage to be the later.
When you hear a death of an unknown it may sound nothing. And when you see it, you feel a little pain. But when you are into a death of your loved one you just can't restrain yourself any further to not to cry. That little pain becomes pain of death.
The important thing here is that this phenomenon is totally relative. Emotions are relative too? Your opinion may differ with what I have entrusted. But the essence is same from where I see it. We take birth and death takes us. What we leave here, are the reasons. Happiness happens the same moment as sadness. To get something we need to lose a lot. Nature. The reasons."
And she sobbed. He was always into why of things but she never understood the easiest him, the love, above all nature. Above all reasons. When he was losing the ray of hope towards a better tomorrow she could have saved him a little and saved that tomorrow to become a past. But he lived in his own sadness and in other's happiness.
The reasons were solved, a little.
Picture credit: www.animistjottings.wordpress.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Monday, November 10, 2014
मिट्टी सी सोंधी यादें
Childhood Memories Of Relationships
Childhood Memories Of Relationships
इस बाज़ार की चहल पहल
और ये गुथी हुई सी भीड़
मेरे कानों में बजते संगीत से
सामंजस्य बिठा ही रहे थे
कि अचानक
मैं आवाक होकर
कहीं खो सा गया
शायद उन्हीं यादों में
जिनमें मेरा मन
आज भी रमा हुआ है
भीड़ से अलग
बाज़ार से कहीं दूर
जहाँ खिलौने मिलते हैं
और मिट्टी का गुल्लक भी
और जब गुल्लक में संजोकर
रखे गए सिक्कों की खनक
हृदय से मेल खाती है
तो सरगम शहद की भाँति
मीठा मीठा एहसास कराती है
इन यादों की छाया में
मेरे खिलौनों का एक छोटा सा
पिटारा है, बड़ा ही अनूठा
जिसमें सभी मुझे पाकर
खुश हो जाना चाहते हैं
और मैं उन्हें सजीव होता देख
नम आँखें लिए, हँस पड़ता हूँ
Picture credit: www.craigspoems.wordpress.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Sunday, November 9, 2014
किन्तु संपूर्णता Innocent Night
मुझे इस रात का साथ
संपूर्णता के अस्तित्व से
साक्षात्कार कराना चाहता है
वो चाहता है कि मैं
और मेरा अहम्
शुन्य में विलीन हो जाये
परंतु कहीं दूर से आती
इस किरण के निमित्त
शून्यता सहम उठती है
उसकी करुणामयी आँखें
अवसर पाकर
अश्रु आभूषणों से
स्वयं का श्रृंगार करने लगती हैं
सजावट रुपी मिथ्या
किन्तु विराट स्वरुप, भी
रात का साथ पाकर
प्रसन्न हो उठा है
सहज ही इस श्रृंगार की कान्ति
और भी मनमोहक लग उठती है
रात की कालिमा
अभी गतिमान है
और मैं गतिशील
किसी अन्य पूर्णता की ओर
निश्चिन्त!
किन्तु संपूर्णता
रात में है,
गहरी, काली, अधीर हुई रात में
संपूर्णता के अस्तित्व से
साक्षात्कार कराना चाहता है
वो चाहता है कि मैं
और मेरा अहम्
शुन्य में विलीन हो जाये
परंतु कहीं दूर से आती
इस किरण के निमित्त
शून्यता सहम उठती है
उसकी करुणामयी आँखें
अवसर पाकर
अश्रु आभूषणों से
स्वयं का श्रृंगार करने लगती हैं
सजावट रुपी मिथ्या
किन्तु विराट स्वरुप, भी
रात का साथ पाकर
प्रसन्न हो उठा है
सहज ही इस श्रृंगार की कान्ति
और भी मनमोहक लग उठती है
रात की कालिमा
अभी गतिमान है
और मैं गतिशील
किसी अन्य पूर्णता की ओर
निश्चिन्त!
किन्तु संपूर्णता
रात में है,
गहरी, काली, अधीर हुई रात में
Picture credit: www.wallchan.com
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Saturday, November 8, 2014
आज भी... The Betrayal
तू सयाना तो बहुत है पर इसमें मेरी क्या ख़ता
तेरे लोग तो मुझे आज भी नादान ही कहते हैं
मेरी मोहब्बत को किसी ने आवारगी कहा था कभी
लोग तो मुझे आज भी मोहब्बत में परेशां ही कहते है
तुझे ख़बर भी क्या होगी किस कदर जीता हूँ मैं तेरे बिन
लोग तो मुझे आज भी बिकी दूकान ही कहते हैं
इन लफ़्ज़ों के ज़रिये मेरी तहरीर मोहब्बत बयां करती है
लोग तो तुझे आज भी 'बेवफ़ा' नाम दिया करते हैं
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Friday, November 7, 2014
तो क्या लिखूं What if I write something
अब लिखूं भी तो क्या लिखूं
कोई गीत, कोई कविता
या एक कहानी
भूली बिसरी यादें, वो मीठी बातें
या आँखों का पानी
या फिर लिख दूँ
बीते हुए बचपन को
अपने रीते मन को
आखिर लिखूं भी तो क्या लिखूं
कुछ पराया, कुछ अपना
या एक प्यारा सा सपना
अधूरे रिश्ते, वो अनकहे किस्से
या फूलों का महकना
या फिर लिख दूँ
पराजय में जय की
सरलता हृदय की
Picture credit: What if I write something (www.rappingmanual.com)
(Note- No part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava
Subscribe to:
Posts (Atom)